मार्गशीर्ष:अगहन मास में हुआ था भगवान शिव-पार्वती और राम-सीता का विवाह, इसी महीने से शुरू होता था नया साल
20 नवंबर से अगहन महीने की शुरुआत हो गई है। जो कि 19 दिसंबर तक रहेगा। संस्कृत के अग्रहायण शब्द से इसका ये नाम पड़ा। अग्रहायण यानी आगे रहने वाला यानी साल का पहला महीना। सतयुग में इसी महीने से नए साल की शुरुआत होती थी। इस महीने की पूर्णिमा तिथि पर मृगशिरा नक्षत्र होने से इसे मार्गशीर्ष कहा जाने लगा। इस पवित्र महीने में ही भगवान शिव-पार्वती और श्रीराम-सीता का विवाह हुआ था।
वेदों में मार्गशीर्ष का नाम "सह मास"
वेदों में मार्गशीर्ष महीने को सह मास कहा गया है। यानी ये महीना समानता का है। इस महीने किए गए सभी व्रत और पूजा का पूरा फल जल्दी ही मिलता है। इस महीने किए गए हर तरह के शुभ काम भगवान को अर्पित होते हैं। वैदिक काल से ही मार्गशीर्ष महीने को बहुत खास माना गया है। इसके नाम से ही पता चलता है कि ये सभी महीनों में शीर्ष पर होने के कारण अग्रणी और सबसे ज्यादा खास है।
शिव पुराण के मुताबिक अगहन में शिव विवाह
शिव पुराण के 35वें अध्याय में रुद्र संहिता के पार्वती खण्ड में बताया है कि महर्षि वसिष्ठ ने राजा हिमालय को भगवान शिव-पार्वती विवाह के लिए समझाते हुए विवाह का मुहूर्त मार्गशीर्ष महीने में होना तय किया था। जिसके बारे में इस संहिता के 58 से 61 वें श्लोक तक बताया गया है। पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र का कहना है कि शिव पुराण में बताए गए तिथि और महीने के मुताबिक ये दिन इस साल 21 नवंबर को पड़ रहा है।
श्रीराम-सीता विवाह
धर्म ग्रंथों के जानकारों के मुताबिक अगहन महीने में ही श्रीराम-सीता का विवाह हुआ था। ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि त्रेतायुग में मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में श्रीराम-सीता का विवाह हुआ था। इस शुभ पर्व पर तीर्थ स्नान-दान और व्रत-उपवास के साथ भगवान राम-सीता की विशेष पूजा की जाती है। इसलिए इस दिन को विवाह पंचमी भी कहा जाता है।
बांके बिहारी और कश्यप ऋषि से जुड़ा ये महीना
डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि श्रीमद्भागवद्गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि सभी महीनों में मार्गशीर्ष महीना उनका ही स्वरूप है। इसी पवित्र महीने में कश्यप ऋषि ने कश्मीर प्रदेश की रचना शुरू की थी। इस महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर वृंदावन के निधिवन में भगवान बांके बिहारी प्रकट हुए थे। इसलिए इस दिन भगवान कृष्ण की बांके बिहारी रूप में महा पूजा की जाती है और पूरे ब्रज में महोत्सव मनाया जाता है।