उमंग और पतंग का त्योहार:देश के ज्यादातर हिस्सों में आज ही मनाई जा रही मकर संक्रांति
आज सूर्य मकर राशि में आ जाएगा। सूर्य के राशि बदलने के समय को लेकर मतभेद है। इसलिए कुछ जगह 14 तो कहीं 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनेगी। मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान में 14 जनवरी को ही संक्रांति मनाई जा रही है। सूर्य के राशि बदलने के समय से ही संक्रांति मनाने निर्णय किया जाता है। इस कारण इस त्योहार की तारीखों में बदलाव होता है। यही कारण है साल 2077 से ये 14 नहीं बल्कि 15 और 16 जनवरी को मनेगा।
मकर संक्रांति 14 को ही मनाना सही
खगोल विज्ञान केंद्र से जारी हुए राष्ट्रीय पंचांग के मुताबिक सूर्य 14 जनवरी को दोपहर 02:30 पर मकर राशि में प्रवेश करेगा। इसलिए स्नान-दान का ये त्योहार आज ही मनाया जाना चाहिए। वहीं, बनारस, उज्जैन और अन्य शहरों के पंचांगों के अनुसार सूर्य 14 जनवरी की रात में तकरीबन साढ़े 8 पर राशि बदलेगा। इस कारण कुछ लोग 15 तारीख को स्नान-दान और पूजा-पाठ करेंगे। ज्योतिषियों का कहना है कि परंपरा को मानते हुए स्थानीय पंचांगों के अनुसार ये पर्व दोनों दिन मनाया जा सकता है।
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हर साल 20 मिनट देरी से मकर में आता है सूर्य
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि सूर्य हर साल 20 मिनट देरी से मकर राशि में आता है। इस तरह हर तीन साल में एक घंटे बाद और 72 साल में एक दिन की देरी से मकर संकांति पर्व होता है। इसी गणित के हिसाब से तकरीबन 1700 साल पहले मकर संक्रांति 21 दिसंबर को मनाई जाती थी। अब 2077 के बाद से 15 जनवरी को ही मकर संक्रांति हुआ करेगी।
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ऋतु पर्व है मकर संक्रांति
सूर्य के राशि बदलने से हर दो महीने में ऋतु बदलती है। मकर संक्रांति एक ऋतु पर्व है। ये हेमंत और शीत ऋतु का संधिकाल है। यानी हेमंत खत्म होने के बाद शीत ऋतु शुरू होती है। इसलिए ठंड का मौसम होने की वजह से मकर संक्रांति पर सूर्य पूजा और खिचड़ी और तिल-गुड़ खाने की परंपरा बनाई, क्योंकि ये अन्न शीत ऋतु में शरीर के लिए फायदेमंद होता है। साथ ही मौसम को ध्यान में रखते हुए इस पर्व पर गर्म कपड़ों का दान भी दिया जाता है।
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मकर संक्रांति के दिन किसकी पूजा की जाती है?
मकर संक्रांति के दिन से ही यह पर्व प्रारंभ हो जाता है। इस दिन ही गन्ना और धान की फसल पककर फसल तैयार होती हैं। फसल को तैयार देखकर किसान खुश होकर इंद्र देव, सूर्य देव और गाय, बैल की पूजा करते हैं।
मकर संक्रांति 14 जनवरी को ही क्यों मनाई जाती है?
पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। वर्तमान शताब्दी में यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है, इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। ... मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायण भी कहते हैं, यह भ्रान्ति है कि उत्तरायण भी इसी दिन होता है।
आप मकर संक्रांति कैसे मनाते हैं लिखिए?
मकर संक्रांति को स्नान और दान का पर्व भी कहा जाता है। इस दिन तीर्थों एवं पवित्र नदियों में स्नान का बेहद महत्व है साथ ही तिल, गुड़, खिचड़ी, फल एवं राशि अनुसार दान करने पर पुण्य की प्राप्ति होती है। ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन किए गए दान से सूर्य देवत प्रसन्न होते हैं।
कुमाऊं में मकर संक्रांति कैसे मनाई जाती है?
उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं में मकर संक्रांति पर 'घुघुतिया' के नाम एक त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार की अपनी अलग ही पहचान है। त्योहार का मुख्य आकर्षण कौवा है। बच्चे इस दिन बनाए गए घुघुते कौवे को खिलाकर कहते हैं- 'काले कौवा काले घुघुति माला खा ले'।
मकर संक्रांति पर हम भगवान को क्या चढ़ाते हैं?
मकर संक्रांति के पावन पर्व पर गुड़ और तिल लगाकर नर्मदा में स्नान करना लाभदायी होता है. इसके बाद दान संक्रांति में गुड़, तेल, कंबल, फल, छाता आदि दान करने से लाभ मिलता है और पुण्यफल की प्राप्ति होती है.
14 जनवरी को कौन सा त्यौहार होता है?
हिन्दी पंचांग के अनुसार नए साल की शुरुआत पौष मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि से हो रही है। पहले महीने में एक बड़ा पर्व मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाया जाएगा।
बिहार में मकर संक्रांति कैसे मनाई जाती है?
खिचड़ी व तिलकुट इत्यादि से बनी चिकी/मिठाइयां खाने के साथ-साथ खिचड़ी व तिल का दान भी दिया जाता है. बिहार- बिहार में मकर संक्रांति को खिचड़ी और मकरसंक्रांति के नाम से जाना जाता हैं. इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने की मान्यता है.
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